Friday, September 18, 2015

हाइकु-दोहे

प्यासी धरती/ खग दुखित रोते/ बढ़ती भूख।
मिटते प्राणी/ है चकित नाहर/ घटा रसूख॥

घिरा अँधेरा/ डर नहीं मनुज/ जला ले दीप।
छले न जाना/ ध्यान से पग धर/ लक्ष्य समीप॥

सावन आया/ खिल उठी बगिया/ मस्त मयूर।
जगी उमंगें/ प्रीत की रिमझिम/ चढ़ा सुरूर॥

हाय गरीबी/ नोंचती तन-मन/ करे हताश।
जला न चूल्हा/ रो पड़े बरतन/ बुझती आस॥

-कुमार गौरव अजीतेन्दु
शाहपुर, दानापुर (कैन्ट)
पटना - ८०१५०३
बिहार

3 comments:

  1. हाइकु और दोहा दोनों .... वाह ! सार्थक प्रयोग …
    बहुत-बहुत बधाई कुमार गौरव अजीतेन्दु जी ....

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  2. "साहित्यालोक" संपादन मंडल का बहुत-बहुत धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए.........

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