Friday, June 19, 2015

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' के हाइकु

हाइकु

बीता आषाढ़
मुदित है प्रकृति
पावस ऋतु।
2-
बहका मन
रिमझिम फुहारें
छुआ जो तन!
3-
पिया के बिन
हरी-भरी धरती
आहें भरती।
4-
सावन हँसा
सतरंगी हो गये
'दोनों' खो गये।
5-
हुई जो प्रात
कल की 'भीगी रात'
बात ही बात!
6-
मन-विभोर
छायी है हरियाली
मन ही चोर!
7-
आ मन नच
नदी-नौका-पर्वत
सपने सच।
8-
यादों के साये
'सीमा पर चौकसी'
सावन जाये।
9-
शिव को प्रिय
सावन का महीना
भक्ति में रमा।
10-
श्रद्धा में डूबे
चले हैं काँवरिया
जय भोले की!
11-
'आ छू ले मुझे'
जब ये हवा बहे
मुझसे कहे!
12-
सर्वत्र हरा
मगन है किसान
मगन धरा।
13-
आया 'मैसेज़'
आते ही सावन के
आ जायेंगे 'वो'!
14-
छाये बादल
उमस छू-मंतर
मन-कमल!
15-
शिव प्रसन्न
बम-बम की गूँज
शुभ ही शुभ!

-डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
(अध्यक्ष-अन्वेषी संस्था) फतेहपुर (उ.प्र.)-212601
मो.- 9839942005, 8574006355
ईमेल- doctor_shailesh@rediffmail.com 

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