Tuesday, July 21, 2015

ग़ज़ल - कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

छत की उम्र पूछनी है तो ढहती दीवारोँ से पूछ।
आग का मतलब पूछ न मुझसे जलते अंगारों से पूछ।

छेनी की चोटों से जिनका रेशा रेशा दुखता है,
ऊंचा उठने की कीमत तो ज़ख्मी मीनारों से पूछ।

बड़े बड़े महलों का तू इतिहास लिखे , इससॆ पहले
कितने घर बरबाद हुए थे बेघर बंजारों से पूछ।

पुरखों की संघर्ष-कथा कंप्यूटर क्या बतलाएगा,
कैसे मुकुट बचा माता का टूटी तलवारों से पूछ।

ओ मगरूर मुसाफ़िर तेरे सफ़र की फिर भी मंज़िल है,
जिनको चलना और फ़क़त चलना है उन तारोँ से पूछ।
                                      
                                                    - कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

Saturday, July 18, 2015

दुबई में सम्मानित हुए डॉ.यायावर

अन्तरराष्ट्रीय साहित्य कला मंच का तीसवां वार्षिक समारोह दुबई में 5 जून से 9 जून तक आयोजित हुआ| जिसमें 6 जून को सरस्वती सभागार दुबई ग्रैंड होटल दुबई में डॉ.राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर' को सम्मानित कर "साहित्य श्री" की मानद उपाधि प्रदान की गई|
समारोह के दौरान 'विश्व पटल पर हिंदी' विषय पर संगोष्ठी हुयी जिसका सफल सञ्चालन डॉ. यायावर ने किया| संगोष्ठी में भारत के 10 प्रदेशों के अलावा 6 अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भी अपने आलेख प्रस्तुत करते हुए हिंदी को भविष्य की भाषा बताया| 
संगोष्ठी में डॉ.पूर्णिमा वर्मन मुख्यातिथि थीं और अध्यक्षता डॉ.रामावतार शर्मा ने की| इस अवसर पर अमेरिका के प्राण जग्गी और मेजर शेर बहादुर विशिष्ठ अतिथि थे| दुबई के मुख्या वक्ता डॉ.त्रिलोक नाथ थे| 
6 जून को मंच के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.महेश दिवाकर के सञ्चालन में विभिन्न साहित्यकारों को सम्मानित किया गया| डॉ. यायावर को उनकी साहित्य साधना के उपलक्ष्य में 'साहित्य श्री' की मानद उपाधि प्रदान करके सम्मानित किया गया| 
उल्लेखनीय है कि डॉ यायावर की अब तक 21 मौलिक और 10 सम्पादित कृतिया प्रकाशित हो चुकी हैं| शताधिक कृतियों में उनकी लेखकीय सहभागिता है|

Saturday, July 4, 2015

गीत - धीरज श्रीवास्तव

सेतु बनाकर अपने दिल से
उसके दिल को जोड़ लिया!
मैँने जैसे कोई तारा
आज गगन से तोड़ लिया!

आओ खुशियोँ साथ निभाओ
और सदा ही संग रहो!
आँगन मेरे महको बेला
लगकर मेरे अंग रहो!
सच कहता हूँ मैँने मुँह को
अवसादोँ से मोड़ लिया!
मैँने जैसे कोई....

सरसो के पीले फूलोँ सा
झूमे औ' मुस्काये मन!
पछुवाई भी भंग पिलाये
खूब हँसे बौराये मन!
रंग गुलाबी घोला मैँने
अपने ऊपर छोड़ लिया!
मैँने जैसे कोई....

आऊँ जाऊँ अन्दर बाहर
ठुमक ठुमक कर नाचूँ मैँ!
और सुखोँ की इक इक चिट्ठी
अन्तर्मन मेँ बाचूँ मैँ!
देख दुखो ने अपना सर औ
अपना माथा फोड़ लिया!
मैँने जैसे कोई....

Friday, July 3, 2015

उषा यादव 'उषा' की ग़ज़ल

आज भी जु़ल्मतों को नहीं है ख़बर
आखि़रश कैसे होती है रौशन सहर ?

वो तअस्सुब की रह पर न चलते अगर
वीरॉं होने से बच जाते कितने ही घर

ख़त्म हो ही गई जुस्तजू में उमर
एक भी शख़्स़ तो ना मिला मोतबर

चापलूसी नहीं मुझको भाती ज़़रा
इसलिये तो ख़फ़ा है अमीरे-शहर

मन्ज़िलों के निशाँ तक नहीं मिलते हैं
देखिये मुश्किलों से भरा है सफ़़र

Page link-
http://www.facebook.com/ushayadavusha

आओ दोहा लिखें - रघुविन्द्र यादव

दो पंक्तियोंं और चार चरणों में 13-11, 13-11 के क्रम में कुल 48 मात्राओं से लिखा जाने वाला छंद दोहा कहलाता है। इससे कम या अधिक मात्राओं वाली रचना मानक दोहा की श्रेणी में नहीं आती। मात्राओं के अलावा दोहे का कथ्य, शिल्प, भाव और भाषा भी प्रभावशाली हो। 
आधुनिक दोहा को लोकप्रिय बनाने में सर्वाधिक योगदान करने वाले आचार्य देवेन्द्र शर्मा इन्द्र के अनुसार-''दोहा छंद की दृष्टि से एकदम चुस्त-दुरुस्त और निर्दोष हो। कथ्य सपाट बयानी से मुक्त हो। भाषा चित्रमयी और संगीतात्मक हो। बिंब और प्रतीकों का प्रयोग अधिक से अधिक मात्रा में हो। दोहे का कथ्य समकालीन और आधुनिक बोध से संपन्न हो। उपदेशात्मक नीरसता और नारेबाजी की फूहड़ता से मुक्त हो।"
डॉ.अनंतराम मिश्र अनंत दोहे की आत्मकथा में लिखते हैं-''भाषा मेरा शरीर, लय मेरे प्राण और रस मेरी आत्मा है। कवित्व मेरा मुख, कल्पना मेरी आँख, व्याकरण मेरी नाक, भावुकता मेरा हृदय तथा चिंतन मेरा मस्तिष्क है। प्रथम-तृतीय चरण मेरी भुजाएँ एवं द्वितीय-चतुर्थ चरण मेरे चरण हैं।"
आशय यह कि प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 और दूसरे तथा चौथे चरण मेें 11-11 मात्राएँ जोड़ लेने भर से दोहा नहीं बन जाता। इसके लिए और भी बहुत कुछ चाहिए। दोहे के प्रथम और तृतीय चरण का समापन लघु गुरु या तीन लघु से होना अनिवार्य है। इसी प्रकार दोहा के दूसरे और चौथे चरण का अंत गुरु लघु से होना अनिवार्य है। 
दोहा एक अर्धसम मात्रिक छंद है, इसलिए सबसे पहले मात्राओं की गणना का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। जब तक मात्राओं की गणना का सही ज्ञान नहीं होगा मानक दोहा नहीं लिखा जा सकता। 

मात्राओं की गणना निम्रप्रकार की जाती है-

हिन्दी भाषा के वर्णों को 12 स्वरों और 36 व्यंजनों में बाँटा गया है। सभी व्यंजनों की एक मात्रा (।) मानी जाती है। लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ की भी (।) मात्रा ही मानी जाती हैं। जबकी दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ और औ की मात्राएँ दीर्घ (ऽ) मानी जाती हैं। व्यंजनों पर लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ आ रहे हों तो भी मात्रा लघु (।) ही रहेगी। किंतु यदि दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ आ रही हों तो मात्रा दीर्घ (ऽ) हो जाती है।
अर्ध-व्यंजन और अनुस्वार/बिंदु (.)की आधी मात्रा मानी जाती है। मगर आधी मात्रा की स्वतंत्र गणना नहीं की जाती। यदि अनुस्वार अ, इ, उ अथवा किसी व्यंजन के ऊपर प्रयोग किया जाता है तो मात्राओं की गिनती करते समय दीर्घ मात्रा मानी जाती है किन्तु स्वरों की मात्रा का प्रयोग होने पर अनुस्वार (.) की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती।
आधे अक्षर की स्वतंत्र गिनती नहीं की जाती बल्कि अर्ध-अक्षर के पूर्ववर्ती अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती है। यदि पूर्ववर्ती व्यंजन पहले से ही दीर्घ न हो अर्थात उस पर पहले से कोई दीर्घ मात्रा न हो। उदाहरण के लिए अंत, पंथ, छंद, कंस में अं, पं, छं, कं सभी की दो मात्राए गिनी जायेंगी इसी प्रकार शब्द, वक्त, कुत्ता, दिल्ली इत्यादि की मात्राओं की गिनती करते समय श, व, क तथा दि की दो-दो मात्राएँ गिनी जाएँगी। इसी प्रकार शब्द के प्रारंभ मेें आने वाले अर्ध-अक्षर की मात्रा नहीं गिनी जाती जैसे स्वर्ण, प्यार, त्याग आदि शब्दों में स्, प् और त् की गिनती नहीं की जाएगी। प्रारम्भ में संयुक्त व्यंजन आने पर उसकी एक ही मात्रा गिनी जाती है। जैसे श्रम, भ्रम, प्रभु, मृग। इन शब्दों मेें श्र, भ्र, प्र तथा मृ की एक ही मात्रा गिनी जाएगी।
अनुनासिक/चन्द्र बिन्दु की कोई गिनती नहीं की जाती। जैसे-हँस, विहँस, हँसना, आँख, पाँखी, चाँदी आदि शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग होने के कारण इनकी कोई मात्रा नहीं मानी जाती।

दोहे का प्रथम और तृतीय चरण-

दोहा लयबद्ध रहे इसके लिए इसे केवल दो, तीन, चार और छह मात्राओं से ही शुरू किया जाता है, पाँच मात्राओं से दोहा का कोई चरण शुरू नहीं किया जाता। प्रथम और तृतीय चरण शुरू करने के मात्रिक गणों के हिसाब से कुल 34 भेद छंद विशेषज्ञों तय किए हैं। इसी प्रकार दूसरे और चौथे चरण के लिए 18 भेद तय किए हैं। जिनका क्रमवार विवरण निम्रांकित है-
दो मात्राओं से दोहा शुरू करने के विद्वानों ने मात्रिक गणों के अनुसार 12 भेद बताए हैं-
2, 2, 2, 2, 2, 3 जैसे- सुख-दुख मेें जो सम रहे (होता सच्चा संत)
2, 2, 2, 2, 3, 2 जैसे- अब तक भी है गाँव में (कष्टों की भरमार)
2, 2, 2, 4, 3 जैसे- घर तो अब सपना हुआ (महँगी रोटी दाल)
2, 2, 4, 2, 3 जैसे- दिन दिन बढ़ते जा रहे (झूठ और पाखंड)
2, 4, 2, 3, 2 जैसे- इक मानव की भूख है (इक सागर की प्यास)
2, 4, 2, 5 जैसे- धन दौलत को मानते (जो अपना भगवान)
2, 2, 4, 5 जैसे- घर की खातिर चाहिए (त्याग समर्पण प्यार)
2, 2, 4, 3, 2 जैसे- धन की अंधी दौड़ में (दौड़ रहे हैं लोग)
2, 5, 4, 2,
2, 6, 3, 2
2, 2, 6, 3
2, 6, 2, 3
दो मात्रा से प्रारम्भ होने वाले प्रथम और तृतीय चरण में शुरू मेंं दो मात्रा के बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता। इसी प्रकार प्रारंभ में दो के बाद चार मात्रा आने पर तीन मात्रा नहीं आती। साथ ही शुरू में तीन बार दो-दो मात्रा वाले शब्द आ रहे हों तो उनके बाद भी तीन मात्रा नहीं आती। प्रारंभ में दो मात्रा के बाद छह मात्रा आने पर उसके बाद चार मात्रा नहीं आती।

तीन मात्राओं से प्रथम और तृतीय चरण शुरू करने के आठ भेद बताए गए हैं-
3, 3, 2, 3, 2 
3, 3, 2, 2, 3 
3, 3, 2, 5
3, 5, 5, 
3, 5, 2, 3
3, 3, 4, 3
3, 5, 3, 2
3, 3, 5, 2 
शुरू में तीन मात्रा शब्द के बाद दो, चार और छह मात्रा वाले शब्द नहीं आते। इसी प्रकार शुरू में तीन के बाद पाँच मात्रा हों तो उसके बाद चार मात्रा वाला शब्द नहीं आएगा।

चार मात्राओं से दोहे का प्रथम और तृतीय चरण शुरू करने के 10 भेद विद्वानों द्वारा बताए गए हैं-
4, 4, 3, 2
4, 4, 2, 3
4, 4, 5
4, 2, 4, 3
4, 2, 2, 2, 3
4, 2, 2, 3, 2
4, 2, 2, 5 
4, 3, 3, 3
4, 2, 5, 2 
4, 3, 4, 2
चार मात्रा से शुरू होने वाले प्रथम और तृतीय चरण में प्रारंभिक चार के बाद पाँच मात्रा वाला शब्द नहीं आता। इसी प्रकार यदि चार मात्रा वाले शब्द के बाद दो मात्रा वाला शब्द आ रहा हो तो उसके बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता।

छह मात्राओं वाले शब्द से दोहे के प्रथम और तृतीय चरण की शुरूआत करने के चार भेद होते हैं-
6, 2, 2, 3
6, 2, 3, 2
6, 4, 3
6, 5, 2
छह मात्रा वाले शब्द के बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता। 

दोहे का द्वितीय और चतुर्थ चरण-

प्रथम और तृतीय चरण की तरह ही दोहे का दूसरा और चौथा चरण भी केवल दो, तीन, चार और छह मात्राओं से ही शुरू होता है। दो मात्रा से शुरू होने वाले दूसरे और चौथे चरण के विद्वानों ने आठ भेद बताए हैं-
2, 2, 2, 2, 3 
2, 2, 2, 5 
2, 2, 4, 3 
2, 2, 3, 4
2, 4, 2, 3
2, 4, 5
2, 5, 4
2, 6, 3
दोहा के दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत दो मात्रा वाले शब्द से हो रही हो तो उसके बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता। 

तीन मात्रा वाले शब्द से दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत के निम्र भेद तय किए गए हैं-
3, 3, 5
3, 5, 3 
3, 3, 2, 3
इसका चौथा भेद भी होता है जिसमें 3, 2, 3, 3 मात्राएँ होती हैं, किंतु बीच की मात्राएँ 2 और 3 वास्तव में पाँच मात्राओं वाले शब्द के रूप में ही प्रयोग की जाती हैं। जैसे अध जले, अन मने।
तीन मात्रा से शुरू हो रहे दूसरे और चौथे चरण में प्रारंभिक तीन मात्रा वाले शब्द के बाद दो मात्रा वाला शब्द नहीं आता।

चार मात्राओं वाले शब्द से दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत के चार भेद बताए गए हैं-
4, 4, 3
4, 3, 4
4, 2, 2, 3
4, 2, 5
चार मात्रा से शुरू होने वाले दूसरे और चौथे चरण में छह मात्रा वाले शब्दों का प्रयोग नहीें होता। इसी प्रकार चार मात्रा वाले शब्द के ठीक बाद पाँच मात्रा वाला शब्द नहीं आता।

छह मात्राओं से दूसरे और चौथे चरण की शुरूआत के केवल दो ही भेद विद्वानों ने बताए हैं-
6, 2, 3
6, 5
छह मात्राओं से शुरू होने वाले दूसरे और चौथे चरण में चार मात्राओं वाले शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता। इसी प्रकार छह मात्रा वाले शब्द की ठीक बाद तीन मात्रा वाला शब्द नहीं आता। 
इसके साथ-साथ कुछ और भी नियम विद्वानों ने तय किए हैं जैसे-दोहे का प्रथम और तृतीय चरण जगण अर्थात । ऽ। मात्रा वाले शब्द से शुरू नहीं किया जा सकता। जैसे जमीन शब्द।
दूसरे चरण के अंत में चार मात्रा वाला शब्द हमेशा जगण अर्थात । ऽ। मात्रा के रूप में ही आता है।
उपरोक्त नियमों को ध्यान में रखते हुए यदि दोहे की रचना की जाए तो उसके लयात्मक और धारदार होने की संभावना बढ़ जाती है।

-रघुविन्द्र यादव 
संपादक, बाबूजी का भारतमित्र